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[१३] हित करनेवाले होते हैं और अपना सापक पद पूण होनेके , पश्चात् अपने उत्कृष्ट उदाहरणसे असंख्य मनुष्योंके हृदयपरज्ञानका प्रकाश राल सकते हैं। दूसरोंको सुधारनेका आवेग ही एक तरहकी निर्मलता है इस निर्वलतामें पढ़कर अपने हितमें प्रमाद सेवन करनेका प्राकृत हृदय कितना अधिक पात्र है इस बातको प्रभु जानते थे अतएव उन्होंने इस निर्बलतासे अपना रक्षण करनेका हमें उपदेश दिया है। जो दोष हमारेमें विद्यमान हैं उन दोपोंको त्याग करनेका उपदेश समक्ष मनुष्यके अन्तःकरणपर खराब असर पैदा करता है इससे जो खराब असर होता है इसको भविष्यमें कम करनेके लिये ही प्रमुने अपने दृष्टान्तसे बता दिया कि उपदेशकका साधक पद जितने अंशमें पूर्ण हो उतने ही मंश वह दूसरोको उपदेश देने लायक है।
जब हम आजकलकी परिस्थितियोंका अवलोकन करते हैं तो हमें प्रमुके उद्देशसे कुछ दूसरा ही दृश्य चारो ओर नजर आता है जिस आवंशको रोकनके लिये प्रमुने बारह वर्ष तक मौन धारण किया था और उसके द्वारा ही उदाहरण रूप छाप मारनेका प्रयत्न किया था। इसी आवेशने उपदेशकोके हृदयमें भयङ्कररूप धारण कर लिया है। आज कुछ नई बात सुनी कि एकदम टेबलपर खड़े होकर हाय लम्बाते हुए दर्शाते हैं परन्तु दूसरोंको लाभ करनेवाली इस मिथ्या परमार्थवाली वृत्तिका लोगोंमें दुनिग्रह हो चुका है। निस तरह बिल्लीके पेटमें खीर नहीं टिकती है ठीक उसीके सश ऐसे मनुष्य कुछ जान लेनेके पश्चात् चाहे वह सत्य हो अथवा. असत्य, परन्तु महां तक वे इसको लोगोंके सामने प्रदर्शित न करे