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[११] पर्याय आरंभ हुआ। अपने सर्वाङ्ग सुन्दर शरीर पर वैरागीके योग्य पोशाक प्रभुने धारण करली। जो कोमल शरीर आज पर्यन्त राज्यकी विपुल समर्खियों में पोषित तथा परिवर्धिन हुआ था और जिसको तृप्त सुवर्णसम ज्योतिर्मयताके गरम हवाका स्पर्श भी कभी नहीं होने पाया था। वही मनोहर प्रतिमा आनसे संयमकी कफनीसे याचादित हो गई। संसारके पाप धोनेके लिये प्रमुने समस्त पुण्य सामग्रीका त्याग कर दिया । जिस शरीर शोभाको पामरसे पामर जीव भी प्रिय गिनते हैं उसका प्रभुने केशोंके लोचसे नाश कर दिया। जिन भोगोंके क्षणिक वियोगसे ही यह संसारी आत्मा गहरे निश्वास छोड़ने लगता है महावीर प्रमुने उन्ही भोगोंको प्रसन्नता पूर्वक छोड़ दिया। सुशीला पत्न' यशोदा, प्रिय दुहिता प्रियदर्शना, छत्रप बड़े भाई नंदीवर्धन, राज्यकी अतुल लक्ष्मी
और आज्ञाकारी अनुचर इन सबका त्याग करते समय प्रमुको रंच मान भी खेद नहीं हुआ। राज्यकी समर्द्धि में पोषण प्राप्त उनका कोमल शरीर संयमके कठिन कष्टोंको किस प्रकार सहन कर सकेगा ऐसा दैहिकभावयुक्त विचार उनको निर्बल कर अपने उद्देशसे नहीं हटा सका । कहाँ तो स्वार्थका रंच मात्र भी लोप हो जानेसे दुःख प्रकट करनेवाला यह पामर भीरु आत्मा और कहाँ बाह्य सम्पत्तिमेंसे अहम् भावको सत्रांश छोड़नेवाला अमोहशक्ति सम्पन्न वीर आत्मा ?
संयोग और वियोग बादलोंके माफिक बंधते हैं और फिर विखर जाते हैं इस वातको समझनेवाला महात्मा पुरुप संयोगकालमें कभी प्रसन्न नहीं होता और न उसके वियोगकालमें उस प्रसन्नताके प्रत्याघात रूप खिन्नता ही प्रकट करता है कि.