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में आश्वयोन्वित करनेकी करामात होती है परन्तु उसके प्रभव स्थानका 'परिचय पानेसे वह आश्चर्य जो कि पहिले अद्भूत मालूम होता था नाश होकर उसके स्थान में संभवनीय तथा बुद्धि गम्य हो जाती है । किमेषु अधिकम् प्रभुका अमोध धैर्य, सहनशीलता, समभावशत्रु और मित्र प्रति समान दृष्टि सारे दीव्य गुण उनके आत्माकी विशुद्धतामेंसे प्रगट हुए थे ।
दीक्षा लेनेके पश्चात् विहार करते २ प्रभु एकदा कुमार गांवके निकट पवारे वहां नासिका अत्र भाग पर अपनी दृष्टि जमा दोनों हाथ लम्बे का स्थूल मूर्तिकी भांति कायोत्सर्ग ध्यानमें लीन हो गये ऐसे ही समय में एक गोवाला अपने बैलोंको चराता हुआ वहाँ आ निकला और उन्हें प्रयुके सामने चरते हुए छोडकर कारणवशात् घरको चला गया। उसके जाने पश्चात् वे स्वच्छन्दतासे चरते २ बहुत दूर चले गये और इसलिये उस गोवालाके लौटने पर उसे वे वहां नहीं मिले। उसने भराकर नटसे प्रभुसे उनका पत्ता पूछा परंतु ध्यानस्थ प्रभु उसे किस प्रकार उत्तर देते ? हताश हो वह उन्हे शोधनेको आगे बढ़ा इस बीचमें वेल चरते २ पीछे प्रभुके पास आकर बैठ गये। गोवाला ढूंढता २ फिर उधर ही आ निकला । आते ही सामने देखता क्या है के उसके दोनों बैल प्रमुके पास बैठे हुए हैं। इस घटना से अनेक संकल्प विकल्प वाद वह इस निश्चय पर आया कि इस साधुने मेरे बैलोंको चुरा ले जानेकी खोटी दानीशसे ही उस समय कहीं न कहीं छिपा रक्खे थे। बस फिर क्या था क्रोध रूपी पिशाचके. फंदे में पड़कर ध्यानस्थ प्रभुको मारनेको लपका । उसी समय में
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