Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 24
________________ [२] पट्टराणी त्रिशलादेवीके गर्ममें और त्रिशलादेवीके गर्भको देवानंदा . गर्भ में स्थापन करवाया था। ऐसे अलौकिक व्यतिकरोंको सिद्ध करनेका प्रत्यन करना, अथवा विज्ञानिक युगमें यह कहनेकी हिम्मत करना कि ऐसा हो सकता है, बुद्धिमानीका कार्य नहीं है । निस वातको मनुष्यकी बुद्धि असंभव और संभवनीयताके प्रदेशसे बाहिर गिनती है, उस बातको केवल श्रद्धा और शास्त्रोक वाक्योंपर आधार रखकर दूसरेके मगजमें जबर्दस्ती ठसानेका प्रयत्न करना विलकुल अनुचित है। नथापि'. जो लोग असामान्य और दैवी सत्ताके कार्यों में श्रद्धारखते हैं; व भी उक्त गर्भान्तरकी घटनासे एक महत्त्वकी वात सीख सकते हैं। और वह यह है कि महावीर प्रमुके जीवने मरीचिंके जन्ममें कुलाभिमान किया था। इसलिये उन्हें भिक्षुक्के.घर गर्भमें आकर रहना पड़ा था। जबसे मद, अहमन्यता, अभिमान आदि किसी भी मनुप्यके हृदयमें उत्पन्न होने लगते हैं तब हीसे उस मनुष्यकी आत्मा अपने उच्च स्थानसे गिरकर निकृष्ट स्थितिमें पहुँचनेके साधन उपार्जन करने लग जाती है। कार्यके साथ उसका फल प्रयत्नके साथ उसका परिणाम आघातके साथ उसका प्रत्यावात और भावनाके साथ उसका बदला सदा लगे ही रहते हैं। आत्मा गर्वोन्मत्त हो अपनेसे निकृष्ट स्थितिका तिरस्कार करती है क्योंकि गर्भके साथ हमेशा तिरस्कार रहता है उसका तिरस्कार ही तबसे तिरस्कृत्य स्थितिमें लेंजानका कारण बन जाता है। जिन स्थितियों को पार करके मनुप्य आगे बढ़ा है, उन स्थितियोंसे घृणा काना सर्वथा अनुचित है इसी तरह जिन उच्च स्थितियोंका वह स्वयम् भोक्ता है, उनसे

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