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करनेवाली दासियोंका देयो होना । ज्यन्तर देविया । ( २२) राजा धर्मपालको पुत्रोका घाम । ( २३) पूर्वभव कथन । (२४-२८) नागदसका बास्यान । ( २९) नागदत्तका नागको वशमें करना ।
सन्धि ३२
(१) जयकुमारके पूछनेपर सुलोचना श्रीपालका परित कहती है । पुण्डरीकिणी मगरीमें कुबेरषी अपने पति के लिए चिन्तित है । महामुनि गुणपालका मागमम । (२) वह वन्दनाभक्ति के लिए गयी। उसके पुत्र भी दूसरे रास्तेसे वन्दना-भक्ति के लिए गये। उन्होंने जगपाल यक्षका मेला देखा । (३) नर-नारीफे जोडेका नृत्य । (४) जोरेका परिचय । श्रीपाल पुरुष रूपमें नाचती हुई कन्याको पहचान लेता है, जो राजकन्या पी। एक चंचल घोड़ा उसे ले जाता है। (५) घोड़ा श्रीपालको विजया पर्वतपर के गया। (६ ) वेताल बताता है कि धोपाल ने पूर्वभवमें उसकी पत्नीका अपहरण किया था। जगपाल यक्ष उसकी रक्षा करता है। (७) यसका वतालसे दन्त । (८) वेताल कुमारको छोड़कर भाग जाता है ! सरोवरम पानी पीने जाना। एक बालासे भेंट। (१) कुमारका वर्णन । (१०) कन्या परिचयके साथ अपना संकट बताती है । (११) वह श्रीपालको अपना पति मानती है, और बपना हाल बतातो है। (१२) अशनिवेगने उन्हें यहाँ लाकर छोड़ दिया है। (१३) श्रीपाल उनकी रक्षाका उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है। विद्युद्धेगाको देखकर लड़कियां वनमें भाग जाती है। (१४) विद्यापरीसे कुमारकी बातरोत । विधापरी उसे छिपाकर जाती है । भेरुण्ड पक्षो उसे ले जाता है। (१५)ोपालको सिवकूट मिनारूयके मिकट छोड़कर पक्षी भागता है । जिनवरफी स्तुति । ( १६ ) सिद्धकूटके किवार खुलना । वस्तुस्मितिका पता चलना । मोगावती से विवाहका प्रस्ताव । ( १७) भोगावतीको भोपाल वारा निन्दा । पिता कुमारको प्रेतवनमें विद्या देता है। (१८)कुमारको सर्वोषधि विधासी सिदि । कुमार को नवयुवा बना देता है, औषषिके प्रभावसे । (१९) एक वृद्धा स्त्रोसे भेट | कुमार परपर उठाकर रखता है । वृद्धा र देती है। (२०)ोपाल उन्हें खाता है। (२१) कुमार अपना परिचय देता है । (२२) श्रीपालका पारम्परिचय । (२३) प्रज्ञा यौवनको प्राप्त अपना परिचय देती है। (२४) पमिलाकी प्रेमकथा ! ( २५) कुमारको मालूम हो जाता है कि वह अशनिवेग विद्याधर द्वारा यहाँ लाया गया है। (२६ ) विद्युवेगाका वियोग कवन । श्रीपालकी कथाकी समाप्ति ।
सन्धि ३३
३४०-५३ {१) जिनालय में जिनवरकी स्तुति । (२) भोगावती आदिका वहाँ पहुँचना । (३) जिनेन्द्र भगवानको स्तुति । विद्या सिद्ध करते हुए राजकुमार शिवकी गर्दन टेडी होना । (४) श्रीपाल उसके गलेको सीषा कर देता है। राजाका कुमारके पास जाना। (५) जिममन्दिरम पहुँचना । सुखोदम वावड़ीमें पहुँचना । ( ६ ) सुखावतीका काम । (७) अशनिवेगका आना। (८) अशनिवेगका आक्रमण । शत्रुसेनाका उपद्रव । (९) विद्यारियां क्रीड़ा कर अपने घर जातो है । (१०) उसिराबतोके हिरण्यवर्माको चिन्ता । श्रीपाल आपत्तियोंमें सफल उतरता है। (११) जिनेन्द्रकी महिमा । (१२) श्रीपाल सुरक्षित रहता है । ( १३ ) विद्याधरीका दुश्चरित 1