Book Title: Mahapurana Part 2
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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विषय-सूची
लक्ष्मीवतीका चिन्तन । उसका वजजंघको लेख भेजना। (१०) वनजंघका पत्र पढ़ना। (११) वनजंघका प्रस्थान । ( १२ ) वनमें मुनियों को आहारदान । (१३) पूर्वभवका स्मरणः । ( १४-२०) पूर्वभव कथन । ( २१ ) हलवाईका आख्यान । ( २२ ) वनजंघका
पुण्डरी किणी पहुँचना । बह्नका राज्य संभालना । सन्धि २६
१५२-१७३ (१) श्रीमती और उसके पतिका निधन । (२) उत्तर कुरुभूमिमें जन्म । ( ३ ) कुरुभूमिका वर्णन । ( ४ ) दोनोंका सुखमय जीवन । (५) शार्दूल आधिका कुरुभूमिमें जन्म लेना । (६) पूर्वभव कपन । (७) वेदका अर्थ । (८) सच्चे गुरुको पहचान । ( १) तत्त्वोंका कथन । शार्दूल आदिके जीवोंको सम्बोधन । (१०) मुनियोंका आकापा मार्गसे जाना । व्याघ्र आदिका स्वर्गमें जाना । (११) पूर्वभव कथन । ( १२-१८) सम्मिन्नमति आदिक
पूर्वभवका कथन । सन्धि २७
१७४-१८९ (१) आयुके क्षीण होनेका वर्णन ।। २) पूर्वभवका कथन । (३) लोकान्तिक देवोंका वनसेनको प्रबोष देना । (४) पूर्वभव वर्णन । (५) वचनाभिके तपमा वर्णन । (६) ऋद्धियों की प्राप्ति । वजनाभिका महमिन्द्र होना । (७) अवधिज्ञानसे पूर्वभवका ज्ञान । 16-१९) पूर्वभव कपन । (११) पूर्वभव कथन और भरतका प्रश्न । (१२) ऋषभ द्वारा भावी तीर्थंकरों और चक्रवती आदि की पूर्व घोषणा । (१३ ) भविष्य कयन ।
(१४) मरत द्वारा ऋषभ जिनकी स्तुति । सन्धि २८
१९०-२३१ (१) भरत द्वारा शान्तिकर्मका विधान । राजाके बापरणका कथन । (२) भरतका शात्मचिन्तन । (३) राजनीतिविज्ञानका कयन । ( ४ ) भरतको दिनचर्या ! (५) राजाका कथन । (६) कुमुनिकी संगतिका परिणाम । (७) धर्म कपन । (८) प्रजाके धर्म और न्यायकी रक्षा 1 (९) सोमवंशीय राजा श्रेयांसके पूर्वमवका कपन । (१.) दीवर जातिके नाग और नागिनकी कथा । (११) जयकुमारस द्वारपालकी भेंट । राजा अकम्पनकी रानी सुप्रभाका वर्णन । (१२) सुप्रमाके सौन्दर्यका वर्णन । उसकी कन्या सुलोचना । ( १३ ) उसके सौन्दर्यका चित्रण । वसन्तका आगमन | { १४ } वसन्तका चित्रण । ( १५) कन्याका ऋतुमती होना । राजाकी चिन्ता । स्वयंवरकी रपना । (१६) सुलोचनाका स्वयंवरमें प्रवेश । (१७-१८) राजाओं के प्रतिक्रिया। (१९) सारथिका जयकुमारकी ओर रय होकना। (२०) जयकुमारके गलेमें वरमाला डालना । (२१) भरतपुत्र अर्ककोतिका आक्रोश । (२२) नोसि कपन 1 (२३) युद्धके नगाड़ोंका बजना । ( २४ ) योद्धाओंका जमघट । ( २५-२६ ) युद्ध का वर्णन । (२७) घमासान युद्ध । (२८) धनुषका आस्फालन । ( २९) हापियों और घोड़ोंमें भगदड़। (३०) तीरोंका तुमुल युट। (३१) धर्फ कीतिको गर्वोक्ति । ( ३२ ) जयकुमारको चुनौतो। गोंका, आहत होना। ( ३३ ) युद्धभूमिका वर्णन । रात्रिमें युद्ध करनेसे मना करना । (३४) स्त्रियोंको प्रतिक्रिया । (३५) प्रातःकाल युद्धका वर्णन । (३६) जयकुमारके युद्ध कौशलकी प्रशंसा । ( ३७) सुलोचनाको प्रतिज्ञा । अर्ककोतिका पकड़ा जाना ।

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