Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 22
________________ (१९) 'पद्य पृष्ठ ४९-५० ५०-५२ ५३-५४ ५४-५५ ५६-५८ ५८-५९ ५९-६० ६० ६०-६१ ६२-६५ ६५-६६ ६७-६८ ६९-७० ७०-७२ ७३-७६ ७६-७७ ७७-७८ ३१२-३१६ ३१७-३३० ३३१-३४० ३४१-३४८ ३४९-३६२ ३६३-३६७ ३६८-३७२ ३७३-३७५ ३७६-३८३ ३८४-४०९ ४१०-४२१ ४२२-४३५ ४३६-४४५ ४४६-४६४ ४६५-४९० ४९१-४९७ ४९८-५०६ विषय ब्रह्मचर्याणुव्रतका कथन शीलकी नौ बाडें तथा शील-चरित्र वर्णन ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार परिग्रह परिमाण-अणुव्रतका कथन परिग्रह परिमाण व्रतके अतिचार दिग्वत नामक प्रथम गुणव्रत दिग्वत गुणव्रतके पाँच अतिचार देशव्रत नामक द्वितीय गुणव्रत कथन देशव्रतके पाँच अतिचार अनर्थदण्ड नामक तृतीय गुणव्रत अनर्थदण्ड व्रतके अतिचार प्रथम शिक्षाव्रत-सामायिकका कथन सामायिक शिक्षाव्रतके अतिचार द्वितीय शिक्षाव्रत प्रोषधोपवासका वर्णन प्रोषधोपवासके अतिचार भोगोपभोग परिमाण नामक तृतीय शिक्षाव्रतका कथन भोगोपभोग परिमाण व्रतके अतिचार चतुर्थ शिक्षाव्रत-अतिथिसंविभाग व्रतका वर्णन-तदन्तर्गत पात्र, कुपात्र और अपात्रका वर्णन आहारदानकी विधि उत्तम पात्रको दिये हुए दानका फल-भोगभूमिका वर्णन-वज्रजंघ और श्रीमतीकी कथा-कृत, कारित, अनुमोदनाका फल भावलिङ्गी और द्रव्यलिङ्गी पात्रका विचार मध्यम पात्रके दानका वर्णन जघन्य पात्रके दानका वर्णन कुपात्रदानके फलका वर्णन अपात्रदानका फल सुपात्रदानका फल दश कुदानोंका वर्णन अतिथिसंविभाग व्रतके अतिचार सत्रह नियमोंका वर्णन श्रावकके सात अन्तरायोंका कथन सात प्रकारके मौनका वर्णन संन्यासमरणकी विधि तथा चार आराधनाओंके अन्तर्गत सम्यग्दर्शन आराधनाका वर्णन सम्यग्ज्ञान आराधनाका वर्णन ७८-८१ ८२ ५०७-५२९ ५३०-५३७ ८३-८६ ८६-८८ ८८-८९ ८९-९० ९० ९१ ९१-९५ ५३८-५४८ ५४९-५६२ ५६३-५७० ५७१-५७४ ५७५-५७९ ५८०-५८४ ५८५-६०८ ६०९-६१० ६११-६१८ ६१९-६५४ ६५५-६६४ ६६५-६७३ ९५ ९६-९७ ९७-१०२ १०२-१०३ १०३-१०४ १०५-१०६ १०६-१०७ ६७४-६७९ ६८०-६८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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