Book Title: Karmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Author(s): Shivsharmsuri, Gunratnasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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पर ज्ञानावरणादि ३ से ऊपर नामगोत्र की स्थिति हो जाएगी । वहाँ अल्पबहुत्व इस प्रकार होगा सर्वस्तोक मोहनीय, ज्ञानावरणादि ३ असंख्यात गुण, नामगोत्र असंख्यातगुण, वेदनीय विशेषाधिक ।
जिस काल में सभी कर्मों का पल्योपम असंख्येयभाग स्थितिबंध होता है उस वक्त असंख्येयममयप्रबद्ध कर्मों की उदीरणा होती है । दानांतराय और मनः पर्यवज्ञानावरण का देशघाति रसबन्ध होता है । तत्पश्चात् संख्यात हजार स्थितिबन्ध गुजरने पर अवधिद्विक लामांतराय का देशघातिर यंत्र होता है । उसके बाद संख्यात हजार स्थिति बंध होने पर श्रुतज्ञानावरण, प्रचञ्जु दर्शनावरण, भोगांतराय का देशघाति रसबंध होता है । उसके बाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध जाने पर चक्षुदर्शनावरण का देशघाति रस बंध करता है । तदनंतर संख्यातहजार स्थिति जाने पर मतिज्ञानादरण परिभोगांतराय का देशघाति अनुभाग बंध करता है । वहां से संख्यात हजार स्थितिबंध निकल जाने पर वीर्या तराय का देशघाति अनुभाग बंध करता है । क्षपकश्रेणि अथवा उपशमश्रण को अप्राप्त उक्त दानांतरादि का सर्वघाति अनुभाग बंध करता है ।
वीतराय के देशघाति अनुभागबंध करने के पश्चात् संख्यातहजार स्थितिबंध जाने पर संगमघाति १२ कषाय ( अनंतानुबंधि सिवाय) ६ नोकषाय इन २१ प्रकृतियों का अंतरकरण करता है । चार सज्वलन कषाय में से अन्यतम कषाय और ३ वेद में से अन्यतम वेद की स्वोदय काल समान प्रथमस्थिति होती है। शेष कषाय और नोकषाय की प्रथमस्थिति आवलिका प्रमाण होती है ।
अंतरकरण करने पर द्वितीय समय में निम्न सात
१. पुरुषवेद व संज्वलन कषाय का आनुपूर्वी संक्रम |
२. संज्वलनलोम का संक्रमाऽभाव ।
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३. बध्यमान प्रकृतियों का छ आवलिका अतिक्रान्त होने पर ही उदीरणा । ४. मोहनीय कर्म का एकस्थानक रसबंध |
५.
संख्येयवार्षिक स्थितिबंध | उदयोदीरणा ।
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७. मोहनीय के संख्येयवार्षिक स्थितिबन्ध होने के बाद अन्य अन्य स्थितिबन्ध पूर्व पूर्व से संख्यातगुणहीन । शेष कर्मों का असंख्येयगुणहीन स्थितिबंध |
अन्तरकरण होने पर द्वितीय समय से असंख्येयगुण, असंख्येयगुण के क्रम से उपशम होता है । उसमें नपुंसकवेद के उपशान्त होने पर जीव पूर्वोक्त क्रम से स्त्रीवेद की उपशमना
प्रस्तावना
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अधिकार युगपत् प्रवृत्त होते हैं
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