Book Title: Karmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Author(s): Shivsharmsuri, Gunratnasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 323
________________ प्रथमं परिशिष्टम् - उपशमनाकरण भाग १ मूलगाथा: - करणकया करणा वि य दुलहा उवसा भणय बिइयाए। मिच्छत्तुदए खीगो ल हए सम्मत्तमोवसमियं सो भण प्रकरण अणु इन्नाए अणुयोगधरे पणिवामि ॥ जस्स लब्भइ . पाय हयमलद्धपुग्वं जं ॥१ सवस्स य देसस्स य करा व समणादुसन्निएक्किका तं कालं बोठिई तिहणुभागेग देसघाइ स्थ। सध्वस्स गुणपसत्था देसस्स वि तासि विबरीया ॥२ सम्मत्तं सम्निस्स. मच्छत्त सव्वधाईयो ।।१९।। सव्यवसमणा मोहस्सेब उ तरसुवसक्किया जोग्गो। पढमे समए थोत्रो सम्मत्त मीसए प्रसंखगुणो। पंचेंदिगो उ सन्नी पज्जत्तो ल'द्धतिगजुलो ॥३॥ समयमविय कमसो। भन्न मुहुत्ताहि विज्झायो। २० पुव्वं पि विसुज्झनो गठियसत्ताण दुकमिय सोहि । टिहर सघाओ गुण सेढा विय ताव पि आउवषाणं । अन्यरे सागारे जोगे य सुिद्धलेसासु || बहटिइए एगदुगावलिसेसम्मि मिच्छत्त ॥२६॥ ठिंड सत्तकम्म अन्तोकोडाकोडी करेतु सत्तण्ह । । उवसंतद्धा अते बिहिणा ओकडिट यस दलियस्स । टुट्ठाणचट्ठाणे असुमसुम ण च अणुभाग ॥५॥ अज्झवसात गुरुवम्सुदनो तिसु एक्कय रयम्स ॥६॥ बधंतो धुवगडी भवपाउग्गा सुभा प्रणाऊ य ।। सम्मत्तपढमलामो सवोवसमा तहा विगिट्ठो य। जोगवसा य पएसं उकसं मज्झिम जहरण ।६।। छलिगसेसा परं आसाणं कोइ गच्छेज्जा॥२॥ ठिइबंधद्धापूष्णे नवबध पलल्संखभागू णं । सम्दिट्ठी नियमा उवइंटु पवर णं तु सद्दहइ । असुभसुभाणणु भाग अण गुणहाणि वुड्ढाहि ।। सदहइ प्रसभाव'अजाणमाणो गुरुनियोगा ॥२४॥ करणं अप्लापवत्तं भव्य रणमनियट्रिकरणं च । मिछाट्ठिी नियमा उवइट्ठ पदयणं न सद्दहइ। अंतीमूहु त्तय ई उवसतद्धं च लहइ कमा । : सद्दहइ असभा र इटुं वा अणुवइ ॥२५॥ अणममयं वङ् ढतो असाणण णतगुणाए। परिणामट्ठाणाण दोसु कि लोगा असरूज्जा ६॥ सम्मामिच्छट्टिी साग रे ता तहा अणागारे । ग्रह वाजणाराहम्मि य मागारे होइ नाययो ।।६।। म.दोवसोही पढमम्स संखभागाह पढम समय म्मि।। धेय गसम्मट्ठिी चरित्तमोहवसमाइ चिढतो । उक्कासं उलिमहो एकवेदक दोह जीवाश ।१०।। आ चरमायो ससक्कोस पूरप्पवमिइ म ।। प्रजऊ देसई वा विरतो व बिसोहिअद्धाए । २७! वियस्स बिडयसमए जहण्णमवि अणतरुक्कस्सा ।। अन्नाणपन्भु गमजयणहिजमो अवज्जविरईए। नियणमवि ततो से ठिइरसघायठिबन्धगद्धः ऊ ।' एगवयाइ चरिमो अणूमइ मित्तो त्ति देसजई ॥२४॥ गुण सेढी विय समां पढ मे समये पवतंति ।।१२।। अणुमइ विर पो अ जई दोण्ह वि करणा णि दौणि विरन उ तइय। 'उहपुहर क्कास इयरं लिस्स स तमभागो । ठिइकण्डगम भागाणणंमा महत्तत्तं ॥३।। पच्छा गुण सेढी सिं ती या प्रालिंगा उप्पिं ॥१६॥ अणुभाग कण्डगाण बहुहि सहलेहि पूरए एक ।। परिणामपच्चयाओ ण भोगगया गया प्रकरणा उ । ठिइ कण्डमहस्सेहिं तेसिं बोयं समागणेहि ।१५।। गुणसे ढो सि निच्च परिणामा हाणि ढजुया ३६ । गुणसे ही निक्खे वो समये समये असंखगुणणाए । च उगइया पज्जत्ता तिन्नि वि संयोयणा विजोयति । अद्धादगाइरित्तो सेसे सेसे य निक्खेत्रों ।१५। करणहि तीहिं सहिया नंतरकरणं उसमो वा । ३१॥ अनियट्टिम्मि वि एवं तुल्ल काल समाओ नामं। दंसणमा वि तहा कयकरणद्धा य पच्छिमे होइ। संखिज्ज इमे सेसे भिन्नमुहुत्तं ग्रहो मुच्चा ।।६ - जिणकालगो मणस्सो पढवठगो अट्टवासुप्पि ॥३२॥ किंवूण मुत्तसमं ठिइबन्धद्धाएँ अन्तरं किया। अहवा दंसणमोहं पुव्वं उवसामहत्तु सामन्न । प्रावलि दुगेक्कसेसे प्रागाल उदीरणा समिया ॥१७॥ पढभठिइमावलियं करेइ दोण्हं अणुदियाणं ॥३३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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