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8 अप्रमाद-संवर का सक्रिय आधार और आचार 8 ७ *
मृत्यु को साक्षात् खड़ी देख साधक प्रमाद नहीं कर पाता है यदि कर्ममुक्ति का साधक प्रति क्षण सावधान नहीं रहेगा तो वह शीघ्र ही भावमरण-असमाधिपूर्वकमरण को प्राप्त हो सकता है।
राजा जनक के दरबार में एक ऋषि आया। उसने कहा-“मैंने सुना है कि तुम परम ज्ञाम को उपलब्ध हो गए हो, लेकिन मुझे शक है कि इस धन-वैभव में, इतनी सुख-सुविधाओं में, इन सुन्दरियों और नर्तकियों के बीच में, इन सब राजनीतिक और भौतिक पदार्थों के जाल में तुम कैसे उस परम तत्त्व का स्मरण रखते होओगे?" यह सुनकर जनक ने कहा-“इसका उत्तर आज शाम को आपको मिल जायेगा।'' शाम को एक बड़ा जलसा होने वाला था, उसमें देश की प्रसिद्ध नर्तकी का नृत्य होने वाला था। जनक राजा ने उस ऋषि को बुलाया। चार नंगी तलवारें लिये हुए सिपाही उसके चारों ओर तैनात कर दिये। ऋषि जरा घबराया। उसने पूछा-"इसका क्या मतलब? ऐसा क्यों किया जा रहा है ?'' जनक बोले“घबराओ मत। यह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।" और तभी उसके हाथ में तेल से लबालब भरा कटोरा देते हुए कहा-“देखो, यहाँ नर्तकी का नृत्य होगा। तुम्हें इस पूरे स्थान के सात चक्कर लगाने हैं। बड़ी भीड़ होगी दर्शकों की। हजारों लोग इकट्ठे होंगे। अगर तेल की एक भी बूंद नीचे गिरी तो ये ४ सिपाही, जो चार नंगी तलवारें लिये तुम्हारे चारों तरफ हैं; फौरन तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।" ऋषि ने कहा-“बाबा ! माफ करो। हम अपना प्रश्न वापस ले लेते हैं। हम तो सत्संग करने, जिज्ञासा लेकर आए थे, अपनी जान गँवाने नहीं। तुम जानो, तुम्हारा ज्ञान जाने। तुमने परम ज्ञान को उपलब्ध कर लिया होगा, हमें संदेह नहीं है। छोड़ो हमें।" जनक ने कहा-“अब यह नहीं हो सकेगा। जब प्रश्न पूछ ही लिया तो उत्तर देना जरूरी है।” उक्त ऋषि को अब जनक राजा के पास से भागने का कोई उपाय न था। सुन्दर नर्तकी नाच रही थी। ऋषि के मन में बार-बार विकल्प उठता कि जरा नर्तकी की ओर आँख उठाकर देख लूँ। परन्तु मृत्यु का ऐसा भय था कि तेल की एक बूंद भी गिरी तो मेरी निश्चित मौत है। मानो मौत को साक्षात् देखते हुए उसने ७ चक्कर अत्यन्त सावधानी से एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखकर लगाए; तेल की एक बूंद भी नीचे न गिरने दी। जनक राजा ने ऋषि से पूछा-"क्यों ऋषि जी ! उत्तर मिल गया?" “हाँ, महाराज ! मिल गया। ऐसा उत्तर मिला कि मेरा पूरा जीवन बदल गया। किसी आत्मिक वस्तु की स्मृति इतनी देर तक अखण्डित और सतत रहे, तभी आत्मा के निजी गुणों की एक बूंद भी स्थान भ्रष्ट होकर गिर नहीं सकती।" जनक-“तुम्हारे चारों ओर तो चार ही तलवारें थीं; मेरे आसपास तो कितनी तलवारें हैं ? यह तुम्हें पता नहीं है। तुम्हारी जिंदगी थोड़े-से खतरे में थी,
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