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श्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भी मुझे एक-दो बार पूछा - 'थे कर्मवाद पर कित्ता दिन चला लो? आदि'। मैंने निवेदन किया यह सब गुरुओं की कृपा है। मैं कुछ नहीं जानती। गुरुओं व बड़ों से जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत सुना है, उसका मात्र एक अंश बाँटने का साहस कर रही हूँ ।
श्रद्धेया महाश्रमणीजी के सान्निध्य में जब कभी भाई- बहन केन्द्र में उपासना हेतु पहुँचते तो उनको महाश्रमणीजी फरमाती – 'साध्वी कंचनकुमारीजी को तत्त्वों की अच्छी जानकारी है। वे सिद्धान्तों की जानकार हैं। आपको इस बार उनका पूरा लाभ उठाना है।' सुनकर सात्त्विक आह्लाद की अनुभूति होती । यह सब महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्रीजी कनकप्रभाजी की ही कृपा है।
ज्ञान प्रस्तुति की अनेक विधाएं होती हैं। उसमें एक विधा है जिज्ञासा और समाधान, प्रश्नोत्तर शैली। लोगों की अभिव्यक्ति रहती, माँग रहती कि जो आप प्रवचन करती हैं उसकी एक पुस्तक निकल जाये तो हम आसानी से पढ़ लेंगे। प्रवचन करना अलग बात है और निबंधबद्ध लेखों का संकलन कर पुस्तक का रूप देना अलग बात है। वर्तमान में प्रश्नोत्तर शैली को अधिक पसन्द करते हैं। इसके लिए मैंने कर्मवाद को प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
कर्म क्या है ? जड़ कर्म, चेतन आत्मा के साथ कैसे बंध जाते हैं? इन दोनों का सम्बन्ध कैसे होता है ? यह सम्बन्ध कब से है ? आत्मा के साथ बंधा हुआ कर्म कब तक फल नहीं देता। कर्म की स्थिति क्या है ? कर्म बंध का रस तीव्र है या मन्द ? हजार प्रयत्न के बावजूद भी ऐसा कौनसा कर्म है जिसे भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता? आदि अनेक प्रकार के प्रश्नों का समाधान इस पुस्तक में दिया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में सर्वप्रथम आत्मा और कर्म के बारे में चर्चा की गई है। उसके पश्चात् क्रमशः आठों कर्म के बारे में चर्चा की गई हैं और परिशिष्ट में तत्सम्बन्धी कहानियाँ भी उद्धृत की गई हैं।
गणाधिपति श्री तुलसी की अनन्य कृपापात्र, आचारनिष्ठ, मर्यादानिष्ठ साध्वीश्री सिरेकुमारीजी 'सरदारशहर' आज सदेह हमारे बीच में नहीं हैं। उनकी अनेक विशेषताओं से भरा जीवन मेरे लिए कदम-कदम पर मार्गदर्शक बन रहा है। मेरे संयम-पर्याय के पैंतीस वसन्त आपके सान्निध्य में आनन्दपूर्वक बीते। आप मेरी जन्मदात्री नहीं थी, पर जीवनदात्री व संस्कारदात्री होने के कारण आध्यात्मिक जीवन निर्मात्री थी। मैंने मात्र तेरह वर्ष की उम्र में संयम ग्रहण किया। उस समय मैं अबोध बालिका थी। उनके चरणों में बैठकर मैंने जो कुछ पाया वही मेरे जीवन विकास की आधारशिला है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखनकार्य के समय में भी मुझे यह अनुभव हुआ कि परोक्ष में भी उनकी प्रेरणा काम कर रही है।
10 कर्म-दर्शन