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शिखरों को न छू पाया तो याद रखिएगा कि गुनगुना पानी कभी भाप नहीं बनता। भाप बनने के लिए पानी को सौ डिग्री सेल्सियस तक उबलना पड़ता है। वही व्यक्ति सफल होता है जो कि अपनी सौ की सौ प्रतिशत ताक़त, अपने पुरुषार्थ, अपने संघर्ष को झोंक देता है, वही व्यक्ति सौ प्रतिशत सफल होता है। अगर कोई बच्चा फेल हुआ, वह केवल 25% अंक लेकर आया तो इसका मतलब यह हुआ कि उसने केवल 25% मेहनत की थी। अगर कोई लड़का पचास प्रतिशत मार्क्स लेकर आता है तो इसका मतलब है उसने केवल 50% ताक़त पढ़ाई में झोंकी थी। अगर कोई लड़का फर्स्ट क्लाब पास होकर 70% प्रतिशत लाता है तो इसका मतलब यह हुआ कि उसने अपनी 70% ताक़त सफलता के लिए लगाई। लेकिन जो बच्चा टॉप टेन में सफल हुआ, इसका मतलब यह है कि उसने अपनी शतप्रतिशत ताक़त पूरे वर्ष अपनी पढ़ाई के लिए झोंक दी। जो व्यक्ति अपनी जितनी ताक़त झोंकेगा उसका उतना ही परिणाम आएगा।
अगर कोई कहता है, वह तो एक ग़रीब घर में पैदा हुआ है। वह भला क्या कर सकता है? मैं बता देना चाहूँगा कि इस देश के यशस्वी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी ग़रीब घर में ही पैदा हुए थे। जो यह सोचते हैं कि वे ग़रीब घर में पैदा हुए थे, मैं उनकी आत्मा को जगा देना चाहूँगा और कह देना चाहूँगा कि इस देश के सबसे गरिमापूर्ण राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी ग़रीब घर में पैदा हुए। अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी ग़रीब कुल में ही पैदा होने वाले इंसान थे। ग़रीब घर में पैदा होना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन अपने मन को ग़रीब बना लेना अवश्यमेव अपराध है। एक महिला अगर हर पन्द्रह दिन में अपने पति के सामने जाकर अपने हाथ का कटोरा आगे बढ़ाती है और कहती है कि दो हज़ार रुपये हाथ खर्च का देना तो यह डूब मरने की बात है। महिलाएँ स्वाभिमान की जिंदगी जिएँ, कब तक अपने पति के आगे हाथ का कटोरा फैलाती रहोगी? सड़क पर चलने वाला भिखारी कटोरा फैलाये बात समझ में आती है लेकिन आप एम.ए., बी.ए. पढ़ी हैं, फिर भी अगर आपको अपने पति के आगे हाथ फैलाना पड़ता है तो क्या इसे उचित कहा जाएगा? जब पुरुष महिलाओं से पैसा और हाथ खर्चा नहीं माँगते तो महिलाएं अपने पतियों से हाथ खर्चा क्यों माँगे?
एक लड़का अगर मेट्रिक में पढ़ रहा है तो वह भले ही माँ-बाप के खर्चे से अपनी पढ़ाई करे, लेकिन जिस दिन वह मेट्रिक पास कर लेता है, उसके बाद उसको ग्यारहवीं की पढ़ाई करनी है तो वह भूल-चूककर भी अपने आगे की 12 |
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