Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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पुनरावर्तन करना पुनरुक्ति दोष ही होगा। प्रस्तुत कृति एक बृहद् रचना है । इसमें जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य के ग्रन्थों का संकलन मात्र ही नहीं हैं, अपितु तत्सम्बन्धी साहित्य का सारगर्भित परिचय भी प्रस्तुत किया गया है। इस कृति की अपनी कुछ विशिष्टताएँ हैं -
इसमें विद्वद्वर्ग के दृष्टिकोण से सारभूत सामग्री संकलित की गई है।
शोधार्थियों की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए विधि- विधानपरक साहित्य को विषयवार वर्गीकृत किया गया है, यथा-श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य, श्रमणाचार सम्बन्धी साहित्य, प्रायश्चित सम्बन्धी साहित्य आदि । यह वर्गीकरण विधिकारकों एवं सुज्ञ पाठकों हेतु भी उपादेय होगा, ऐसा विश्वास है । सारग्राही पाठकवर्ग की रूचि का ध्यान रखते हुए वैधानिक ग्रन्थों का सूची क्रम अकारादि वर्णमाला से प्रस्तुत किया है।
• कौनसा ग्रन्थ कितना प्राचीन, मौलिक व प्रामाणिक है? तदर्थ कृति का काल भी दिया गया है। जहाँ काल सम्बन्धी निश्चित प्रमाण नही मिल पाये हैं, वहाँ उस रचना की भाषाशैली और विषयवस्तु के आधार पर काल निर्णीत कर उसके आगे 'लगभग' शब्द जोड़ दिया है।
• विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य में विशिष्ट स्थान पाने वाले ग्रन्थों का अपेक्षाकृत विस्तृत परिचय दिया गया है, जो सुधीवर्ग एवं ज्ञान पिपासुओं के लिए सदैव उपयोगी रहेगा ।
इस ग्रन्थ की उपादेयता प्रत्येक वर्ग के लिए बनी रहें, अतएव ये बिन्दू भी ज्ञातव्य हैं
विधि सम्बन्धी साहित्य का आलोडन करते समय ग्रन्थ की विषय वस्तु में निहित विधि-विधानों के परिचय पर विशेष बल दिया गया है। साथ ही विधि-विधान के विभिन्न पक्षों को भी उजागर करने का पूरा प्रयास किया है तथा अनावश्यक कलेवर न बढ़ जाये, इस बात का भी यथासम्भव ध्यान रखा गया है ।
सन्देहास्पद स्थलों की सम्पूर्ति प्रश्नचिन्ह लगा कर की गई है। विधि-विधान सम्बन्धी उपलब्ध साहित्य का समग्र विवरण प्रस्तुत किया गया है ।
जो ग्रन्थ हमें उपलब्ध न हो सकें अथवा जो हमसे अनभिज्ञ रहें हों उन कुछ अलभ्य ग्रन्थों की जानकारी 'जिनरत्नकोश' के आधार पर प्रस्तुत की है। यद्यपि ध्यान-1 - विधि आदि से सन्दर्भित कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ छूट भी गए हैं।
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