Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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से गिरकर या निर्जल देश में मरना, जल में डूब कर मरना, वित्र भक्षण कर अथवा शस्त्रघात से मरना, फाँसी पर लटक जाना, गीध पक्षियों से विदारिता किया जाना या किसी जंगल में प्राण त्याग देना' (३८) । विधवा स्त्रियाँ :
जिनके पति मर गये हों, जो बाल-विधवा हो गई हों, माता-पिता- भाई- कुलगृह और श्वसुर द्वारा रक्षित हों, का जिन्होंने त्याग कर दिया हो, स्नान के अभाव में जो शुद्ध और स्वच्छ न रहती हों, दूध-दही- मक्खन- तेल-गुड़-लवण-मधु-मद्य-मांस का जिन्होंने त्याग कर दिया हो, तथा जिनकी इच्छाएँ, आरम्भ और परिग्रह अल्प हो गये हों (३८) 1 व्रती और साधु :
गौतम – इनके पास एक छोटा-सा बैल होता है जिसके गले में कौड़ियों की माला पड़ी रहती है । यह बैल लोगों के चरण स्पर्श करता है । भिक्षा मांगते समय गौतम साधु इस बैल को साथ रखते हैं ।
गोत्रतिक— गोव्रत रखने वाले । जिस समय गाय गाँव से बाहर जाती है, ये लोग भी उसके साथ जाते हैं । जब वह चरती है तो ये भी चरने लगते हैं, पानी पीती है तो ये भी पानी पीने लगते हैं, और जब वह सोती है तो ये भी सो जाते हैं। गाय की तरह ये साधु भी तृण-पत्र आदि का ही भोजन करते हैं। # गृहिधर्म —ये देव और अतिथि आदि को दान देकर सन्तुष्ट करते हैं, और गृहस्थ धर्म का पालन करते हैं ।
धर्मचिन्तक धर्मशास्त्र के पाठक |
जो त्याग दी गई हों, पुष्प-गंध- माल्य- अलंकार
१. दण्डों के प्रकार आदि के लिए प्रश्नव्याकरणसूत्र ( १२, पृ० ५० अ आदि) भी देखना चाहिए ।
२. टीकाकार ने इसका अर्थ किया है— कूर्चरोमाणि यद्यपि स्त्रीणां न भवन्ति तथापि कासांचिदल्पानि भवन्त्यपीति तद्ग्रहणम् ( पृ० १६८ ) +
३. अंगुत्तरनिकाय ( ३, पृ० २७६ ) में गोतमक साधुओं का उल्लेख है । ४. मज्झिमनिकाय ( ३, पृ० ३८७ आदि और टीका ) तथा ललितविस्तर ( पृ० २४८ ) में गोत्रतिक साधुओं का उल्लेख मिलता है । अनुयोगद्वारसूत्र ( २० ) की टीका में याज्ञवल्क्य आदि ऋषिप्रणीत धर्म संहिताओं का चिन्तन और तदनुसार आचरण करनेवाले को धर्मचिन्तक कहा गया है ।
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