Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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औपपातिक
किया और कुछ ने पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाबत ग्रहण कर गृहिधर्म स्वीकार किया। जनसमुदाय महावीर के उपदेश की प्रशंसा करने लगा-"भंते ! निर्ग्रन्थप्रवचन का आपने सुन्दर व्याख्यान किया है, सुन्दर प्रतिपादन किया है। आपने उपशम, विवेक, वैराग्य और पापों के त्याग का प्ररूपण किया है। अन्य कोई श्रमण-ब्राह्मण ऐसे धर्म का प्रतिपादन नहीं करता ।” राजा कूणिक और सुभद्रा आदि रानियों ने भी महावीर के धर्मोपदेश की सराहना की ( ३५-७)।
उस समय श्रमणभगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य गौतम इन्द्रभूति नामक गणधर महावीर के पास ही ध्यान में संलग्न हुए घोर तप कर रहे थे। तप करते-करते उनके मन में कुछ संशय उत्पन्न हुआ और भगवान् के समीप उपस्थित हो उन्होंने जीव और कर्मबंध विषयक अनेक प्रश्न किये (३८)।
मनुष्यों के भवसम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर देते हुए महावीर ने अनेक विषयों का प्रतिपादन किया:दण्ड के प्रकार:
लोहे या लकड़ी के बन्धन में हाथ-पैर बाँध देना (अंडुबद्धग), लोहे की जंजीर में पैर बाँध देना (णिअलबद्धग), पैरों में भारी लकड़ी बाँध देना ( हडिबद्धग), जेल में डाल देना (चारगबद्धग), हाथ, पैर, कान, नाक, ओठ, जीभ, सिर, मुरव ( गले की नली), उदर और लिंग ( वेकच्छ ) को छेद देना, कलेजे का मांस खींच लेना, आँख, दाँत, अण्डकोष और ग्रीवा को खींच लेना, चाँवल के बराबर शरीर के टुकड़े कर देना, इन टुकड़ों को जबर्दस्ती भक्षण कराना, रस्सी से बाँध कर गड्ढे में लटका देना, हाथ बाँध कर वृक्ष की शाखा में लटका देना, चन्दन की भाति बिलोना, लकड़ी की भाति फाड़ना, ईख की भाँति पेलना, शूली पर चढ़ा देना, शूल को मस्तक के आर-पार कर देना, खार में डाल देना, चमड़े की भाँति उखाड़ना, लिंग को तोड़ना, दावानल में जला देना और कीचड़ में डुबो देना। मृत्यु के प्रकार :
भूख आदि से पीड़ित होकर मर जाना, इन्द्रियों की परवशता के कारण मर जाना, निदान ( इच्छा) करके मरना, भीतरी घाव से मरना, पर्वत या वृक्ष . 1. इन्द्रभूति महावीर के प्रथम गणधर थे। बाकी के नाम हैं-अग्निभूति,
वायुभूति, व्यक्त, सुधर्मा, मंडित, मौर्यपुत्र, अकंपित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास ।
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