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रखके उसीके हितमें लग जाओ। ससार कर्मक्षेत्र है । इसमें जिसने अपने अस्तित्वको जितना ही अधिक नष्ट करके ससारका काम किया है ससारने उसे उतना ही ऊपर उठा लिया है। जिसने संसारकी जितनी अधिक निस्वार्थ सेवा की, उतना ही अधिक संसारने उसके निकट अपना हृदय खोल दिया। किन्तु जहाँ चाहनाका सबसे बड़ा स्वार्थ भरा है वहाँ लोग जाते हुए डरते है। यदि चित्त है तो उन दुतकारनेवाले लोगोंसे मत डरो-बल्कि याद रक्खो कि सबसे पहले वे ही तुम्हारे भक्त वनेगे। इन वादलोंकी गडगडाहटसे मत डरो, क्योंकि तुम इनमें विजली बनके चमकोगे, धुऍमें अग्निशिखा तुही बनोगे और कूड़े करकटमे पुष्परूपसे तुम्हारा ही जन्म होगा। ___संसारने उसीको अपना पूजनीय माना है जो इसके काममें अपने
आपको भूल गया है; यह संसार उन्हींकी मूर्ति बनाके पूजता है जो इसीके चिन्तनमे मग्न रहते थे।
प्रात.काल होता है, सूर्यकी चमकसे दिशाएँ चमकने लगती है, पक्षी आनन्दके मारे नाचने लगते हैं; परन्तु मनुष्य कहानेवाले जीवो, तुम मिट्टीके ढेलेकी तरह क्यो निर्जीव पडे रहते हो? तुम्हारी चैतन्यता क्यो पत्थरके समान स्थिर रहती है ? बल्कि पत्थरपर भी यदि प्रातःकाल हाथ लगाओगे तो ठंडा मालूम होगा और दिनमें गर्म हो जायगा, पर तुम्हारे मनपर इतना सा भी परिवर्तन नहीं होता। यह हम जानते है कि तुम हरसमय चिन्तामें मग्न रहते हो, पर वह चिन्ता केवल तम्हारे लिए ही है, तुम केवल अपने ही घाटे और नफेका विचार करते हो • इसीलिए तुम्हारी निर्जीवता पत्थरसे गई बीती है। तम्हें कभी ' इस बातका . विचार नहीं आया कि अब हमारी संख्या केवल साडे तेरह लाख ही रह गई है! तुमने कभी यह नहीं सोचा'