Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 01
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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इस प्रकार जैनाचारशास्त्र के सभी जिज्ञासुओं को इस कृति को अवश्य ही मनोयोगपूर्वक पढ़ना चाहिए। मुझे पूर्ण आशा है कि इसके अध्ययन से पाठकों को तत्त्वज्ञान, आचार और अध्यात्म की पारस्परिक प्रगाढ़ मैत्री समझ में आएगी।'
तत्त्वज्ञान के ठोस आधार पर स्थित और अध्यात्म के मधुर फलों से सुशोभित जैनाचार की अन्य भी अनेक विशेषताएँ हैं। यथाउसके केन्द्र में सर्वत्र एक अहिंसा व्याप्त है; वह आत्मकल्याणकारी होने के साथ-साथ समाजकल्याणकारी भी है; उसमें आधुनिक विश्व की भयंकर समस्याओं के समाधान भी निहित हैं; वह आधुनिक विज्ञान द्वारा सिद्ध व समर्थित भी है; वह अव्यावहारिक नहीं, अपितु अत्यन्त व्यावहारिक भी है; पाश्चात्य आचारशास्त्र (Western Ethics) और जैन आचारशास्त्र (Jaina Ethics) में महान् अन्तर है; इत्यादि। डॉ. सोगाणी की प्रस्तुत कृति के माध्यम से जैनाचार के इन सभी पहलुओं को भी भलीभाँति समझने में सहायता प्राप्त होगी। मुझे आशा है कि सुधी पाठक इस पुस्तक का समादर करेंगे। .. श्रीमती शकुन्तला जैन ने इस पुस्तक का हिन्दी-अनुवाद करके और जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी ने इसका प्रकाशन करके हिन्दी के पाठक वर्ग का महान् उपकार किया है। वे कोटिशः धन्यवादाह हैं।
-वीरसागर जैन
24 अगस्त 2010 (रक्षाबन्धन)
1. "ज्ञानक्रियानयपरस्परतीव्रमैत्री' - आचार्य अमृतचन्द्र, समयसार-कलश, 267
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