Book Title: Jain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 17
________________ आडम्बर, भोग, परिग्रह आदि दोष हैं ? 2. हिंसा अहिंसा का स्वरूप 3. दो प्रकार के अपराधी 4. प्रतिमा पूजन में हिंसा सम्बन्धी शंकाओं का समाधान 5. जिनेन्द्र देव तथा उनकी प्रतिमा जन में पुष्पपूजा से हिसा का सर्वथा अभाव 6. क्या जिन प्रतिमा पजन, मंदिर, उपाश्रय, पौषधशाला बनाने में हिंसा है ? 7. जिनप्रतिमा न मानने से हानि 8. प्रतिमा की उपोगिता 9. जड़ मूर्ति से लाभ 10. खोया-पाया 11. चार निक्षेपों का स्वरूप 7. सातवां प्रकाश 1. निक्षेप विवेचन लाभ 6. तीर्थ का महत्व और उसकी उपासना से लाभ 7. दोसोsहं, सोsहं, अहं 8. दिगम्बर तेरहपंथ की पूजा पद्धति 9. दोनों दिगम्बर पंथों के पूजा विधान में अन्तर 113 113 120 8. आठवां प्रकाश 1. चैत्य सम्बन्धी विशेष विवरण 16 161-188 161 2. क्या साधु वेश में सब साधु हैं ? 161 3. थोड़ा और सोचिये 164 4. चारों निक्षेप और आगम 168 5. जिनप्रतिमा प जन का ध्येय और 2. चैत्य के पाँच-छह प्रकार 3. कैसी जिन प्रतिमाएं पूजन योग्य हैं 4. घर मंदिर में पजनीय प्रतिमा का स्वरूप 5. विधि पर्वक जिन प्रतिमा कराने Jain Education International 125 127 139 145 146 148 150 153 170 175 179 185 189-206 189 189 182 191 193 वाले को लाभ 6. घर द्वार के सामने देवों के निवास का फल 7. श्वेताम्बर जैन कैसी जिन प्रतिमाओं की उपासना करते हैं ( पुरातत्व) 8. दिगम्बर लामचीदास को कैलाश यात्रा में जिनप्रतिमाओं का प्रकार वर्णन 4. आशातनाएं 5. पूजा विधि 202 तीर्थं भूमि 205 9. तीर्थ भूमि यात्रा लाभ 205 9. नवम् प्रकाश 207-240 I. जिन पूजा विधि 207 2. पूजा में सात प्रकार की शुद्धि 207 3. दस त्रिक 210 195 196 भावना 10. नवांग दोहे अर्थ तथा भावना 11. जिनप्रतिमा - ईश्वर उपासना का उद्देश्य 12. ध्यान कम कर्त्ता लक्षण, मन के भेद - लक्षण 13. परमानन्द प्राप्ति क्रम वहि रात्म-अन्तरात्म भाव 14. परमात्मास्वरूप 15. ध्याता स्खलना नहीं पाता 16. आत्मस्थिरता फल 220 6. प्रभु पूजा से हृदय परिवर्तन 7. किस दिशोन्मुख पूजन का लाभ 222 8. पूजन से शुभ भाव और पापों का नाश 9. अष्ट प्रकारी पूजा, श्लोक, अर्थ 17. एकाग्रता 18. एकाग्रता रीति और प्राप्ति 19. आत्म लय की अवस्था 20. रूपस्थ- मानसी पूजा 21. व्यवहार में वृति स्वरूप का अवलोकन 196 For Private & Personal Use Only 212 214 222 222 228 231 232 233 234 235 239 234 235 235 235 238 www.jainelibrary.org

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