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डॉ0 पू0 धर्मशीलाजी म0 का जन्म ई० सन् 1939 भादप्रद वद अमावस्या यानी किसान लोगों का बड़ा त्योहार पोला और पर्युषण पर्व के तीसरे दिन ‘कान्हूर पठार' (जि0 अहमदनगर) गांव में हुआ । आपश्रीजी का नाम 'विमल' रखा गया ।
आपश्रीजी की भाग्यशाली माताजी कस्तूरबाई के पाँच कन्याएं और तीन पुत्र हैं । उनकी पीठ पर भाई होने से विमलबाई घर में सबसे ज्यादा लाड़ली थीं । आपश्री के माता-पिता की इच्छा इस बालिका को खूब पढ़ाने की थी, परंतु उस जमाने में लड़की को ज्यादा पढ़ाने की परम्परा नहीं थी । परन्तु ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात” इस उक्ति के अनुसार, बचपन से ही आपश्रीजी की प्रतिभा अद्वितीय होने से आपश्रीजी को खूब पढ़ाने का निर्णय किया गया, परंतु जब आपश्री छठी कक्षा में थीं, तब पाठशाला में विश्वसंत पू0 उज्ज्वलकुमारीजी महासती जी का व्याख्यान हुआ । उनके उपदेश से और पूर्व संस्कार के कारण विमलाबाई का वैराग्य दृढ़ हुआ और उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया ।
वैराग्य-भावना जागृत होने पर घर में माताश्री-पिताजी से आपश्रीजी ने कहा कि मुझे दीक्षा लेने की इच्छा हुई है । परंतु सात पीढ़ियों में किसी ने भी दीक्षा को अंगीकार नहीं किया था । इसलिए दीक्षा का नाम सुनते ही उन्हें भूकंप के समान धक्का लगा और खूब विरोध हुआ, परन्तु आपश्रीजी का स्वयं का निर्णय दृढ़ होनेसे आपने विविध प्रकार की कसौटियों का मुख मोड़ दिया और मेरु पर्वत के समान अडिग रहीं । दस वर्ष की बाल आयु में आप पू0 उज्ज्वलकुमारीजी महासतीजी के सानिध्य में रहने लगीं ।
आप दीक्षा न लें इसलिए तीन दिन आपको एक कमरे में बंद करके रखा गया । भोजन, पानी कुछ भी नहीं दिया गया । क्योंकि ऐसा करने पर आप दीक्षा नहीं लेंगी ऐसा माता-पिता को लगा । परंतु किसी भी परिस्थिति में आपश्रीजी ने अपना विचार नहीं बदला, इसलिए मातापिता को दीक्षा की आज्ञा देनी ही पड़ी ।
29 दिसम्बर, 1958 ई० मार्गशीर्ष सुदी एकादशी यानी मौन एकादशी के दिन आचार्य सम्राट 1005 गुरुदेव पू0 आनंदऋषिजी म0 के मुखारविंद से अहमदनगर की पावन भूमि पर पू0 श्री उज्ज्वलकुमारीजी महासतीजी के सान्निध्य में जैन भागवती दीक्षा महोत्सव संपन्न हुआ । दीक्षा के बाद आपश्री का नाम धर्मशीलाजी महासतीजी रखा गया ।
आपश्रीजी ने पूज्य श्री आनंदऋषिजी म०, विश्वसंत गुरुणी मैया पू0 उज्ज्वलकुमारीजी महासतीजी तथा आत्मार्थी गुरुदेव पू0 मोहनऋषिजी म0, अध्यात्म योगी श्रमणसंघीय मंत्री पू० श्री0 विनयऋषिजी म0 और वात्सल्य-वारिधि गुरुणी मैयाजी की माताजी पू० चन्दनबालाजी महासतीजी के मार्गदर्शन में अपना धार्मिक और अन्य शिक्षण शुरू किया ।
दीक्षा ग्रहण करते समय आपश्री सिर्फ छठी कक्षा तक पढ़ी थीं । परंतु बाद में एस0 एससी0 से लेकर एम0 ए0 पी-एच0 डी0 तक का अध्ययन आपश्रीजीने अहमदनगर में किया । पूज्य महासतीजी हिन्दी में 'साहित्य रत्न', संस्कृत में 'कोविद' की परीक्षाएं उच्चांकों से उत्तीर्ण की हैं । इस प्रकार हिन्दी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत,पालि, प्राकृत आदि सब भाषाओं पर आपश्रीजी का असाधारण प्रभुत्व है । पूज्य महासतीजी जब व्याख्यान देती हैं तब केवल उनकी विद्वत्ता ही दिखाई नहीं देती,
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