Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ८ )
युग सावन बद एकम सारी ॥ जोरावर प्रभुके गुणगारी ॥ एरी० ॥ १५ ॥ इति० ॥
अथश्री भिक्षणजी खामीके गुणांको सवन ॥ प्रभु जाय चढ़े गिरनारीरे । वोन छाड़ि है राजुल नारी । सुखौ पश्व पुकारी दया चित धारौ । वारी ममताकों मारी बीसारी ॥ एदेशी० ॥ प्रभु भिक्षु भये अवतारीरे । इण पंचम आरे मंभारी ॥ बहु ,aa उद्धारी किय। भवपारी । ज्यांरो सरण सदा सुखकारी ॥ एत्रां• गणि सुच सिद्धांत के भेद भिनो भिन || खोल किया निस्तारी ॥ अन्य मत्तकों छोड दोना । प्रभु सुद्ध घया अण गारौ ॥ प्रभु सुइ वया अणगारीरे ॥ इण० ॥ १ ॥ गणि देश विदेश बिचर भवितास्था । सुलभ किया नरनारी ॥ जट मुटने सौधाकौना । ज्यांरी भिंतर खोड निवारी ॥ ज्यांरी •
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