Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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तन अप्रसन मन धन ॥ निरखन चित दौदारीयां ॥ तन ॥२॥ रहिन सक्यो दरशन विन पायें ॥ तब इहां प्राय जुहारीयां ॥ तन ॥३॥ तत खन कनै आय दरिशन पायो ॥ देख अचरिज अधिक करारीयां ॥ - तन ॥ ४ ॥ पुरण महेर कारौ सुन उपर । टुक्क निजर निहारोयां ॥ तन ॥ ५॥ सम चित वेदन सहन मही सम ॥ दिलमें धीरज धारौयां ॥ तन ॥ ६ ॥ मन वलियो वलवंत न टूजी ॥ तुम सम भर्थ मंझारोयाँ । तन ॥ ७॥ असुभ दैत्य बघ चूरण कारण ॥ क्षान्त वचकर धारीयां ॥ तन ॥ ८॥ थाले सुख साता अव जलदौ ॥ चिहुं तीरथ भाग्य मुसारीयां ॥ तन ॥ ६॥ गुलाबचंद सुख में मुख नहिस ॥ जयपुर सहर पधारीयां ॥ तन॥ १० ॥ उगणीसै शासठ श्रावण मैं ।। लाडों हर्ष अपारीयां ॥ ११॥ इति ।

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