Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 108
________________ ( १०६ ) बुजे हो ॥ तसु तसकर जेम लुकाय || खमा० ॥ ३ ॥ सकर सभावत सोहै हो ॥ मन मोहे सुरपति साहेबो । हो देव ज्यु ं मुनौ स्येवंत ॥ ग्यान घटा दरसावे हो ॥ भङ ल्याबे उप सम नौर थौ ॥ हो क्यारौ गणु सौंचंत ॥ खमा ॥ ॥ ४ ॥ काव्यकोस नये युगती हो ॥ वरंगद - पद छंद खरे करौ || हो भाषित ं भिन २ भेद ॥ खय अनुमति प्रतौ सुजे शिव मग सांभली ॥ हो ज्युं ब्रह्मा मुख बेद ॥ खमा० ॥ ५ ॥ पर उपगारी भागे हो ॥ सोदागर हित सिख मापने ॥ हो सांती सुधा रस पाय ॥ सिंधु सत्नवत बारु हो | जस थारु महियल विपतयो || महि रसना केम कुहाय ॥ खमा ॥ ६ ॥ भव अरणव ए तरणव हो || तव चरणव सफरी न्याव ज्यं ॥ हा बरणव शिव पुर राज || जग बकूल जस धामी हो सिरनामी खामी

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