Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( १८ ), . पुर्ष नतीमां लक्षण आगला ॥ कोई गुणपटवौशध ॥ म्हारे ॥२॥ नांव कालजी अधीको सोहतो ॥ कोई स्याम वर्ण सुख' कंद ॥ धम्म उपदेश देई भवित्यारता ! कोई संप्रति नेमजिनंन्द ॥ म्हारे ॥ ४ ॥ सुत्र सिद्धांत ख्यात करो बांचता ॥ कोई भिन भिन भेद बखाण ॥ दान दयान मुनि पतछाणन ॥॥ कोई तारे जीव अयाण ॥ म्हारे ॥५॥ बाक्य छटा घटा भाङ भोसरें। कोई जलधारा असमान तिप्त सुण २ सारङ्ग जन जिवडा ॥ कोई उषाने अमृत पान || म्हारे॥६॥ यार तिथं मैगणपत ओपता ॥ कोई निमतारों बिच चंद ॥ मुखडो मलियागर शीतल सोहतो। कोई भतर तप्तनिकंद ॥ म्हारे ॥ ७॥ चिंत्या चर्ग चिन्तामण सारखा ॥ कोई , कल्पतरू दातार । वच्छोत पूरण भूरण पाप नैं । कोई सब जोबां आधार ॥ म्हार॥ ८॥ कनक बर्ण तन सुन्दरता घणी ॥ कोई मुद्रता पंडर ॥ छाई उमाई जग. जशवेलडी ॥ कोई बध रयो पुन्य कूर ॥ म्हारे ॥ ८॥ घाट बौषम वर बचोपड रयो॥ को कर द्यो खेबो पार ॥ सरणे अायालज्या राखज्यो॥ कोई थारोही आधार ॥ म्हारे ॥ १० ॥ सम्वत १८६६ पौष मैं ॥ कोई कृष्ण हतीय बधवार ॥ अज' हजारी करजोड़ी कहै ॥ कोई कलकत्ता सहर मंजार न म्हारे ११॥ इति ॥ .

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