Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 107
________________ ( १०५ ) अष्टमी तिथ गडेरे ॥ गजा० ॥ १२ ॥ जोरा वर तोरा गुण गावै ॥ कलकत्ता सहर मंझेरे ॥ गजा• ॥ १३ ॥ इति ॥ ! __ ढाल राग भटौयांगोको देशो। बसु पठ पेथट छाजे हो॥ बोराने बौरजिन्द ज्य ॥ हो दुक्ष्म पञ्चमे पार ॥ गणौंवर दीनदयालु हो ॥ कृपालु कालु स्वामजी ॥ हो जनक जेम आधार ॥ खमां घणी गण इन्दु हो । गुण सौंधुराज खमां घणौ ॥ एंआं ॥१॥ सुमत गुप्त व्रत पालक हो काई धारक दम विध धम्मना॥ हो बारक च्यार कषाय ॥ जिन धर्म जोत जगावा हो ॥ सुगै दीपक साचो सुन्दरु ॥ दिधो सोसण कलस चढ़ाय ॥ खमा० ॥२॥ पति सैय तेज दिनन्दा हो ॥ जिन दृदा पंकज नौपरे ॥ ही निरख २ हरषाय ॥ गुघु सम दुःख पावे हो ॥ मुरझावे पाषंड पापिया ॥ हो

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