Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ ( ८५ ) पुजजी आप० भिक्षु गणिदं रे ॥ अष्टम पट अति छानै नी ॥ म्हां० ॥ घांगे समो सग्य बिच ॥ देशन सिंह सम गाजै जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ १ ॥ पु० सुत्र सितके भेट् मिनो २ भाषै जो ॥ म्हां० भवि श्रवण सुणीने प्रेम शुधामृतचाखै जो ॥ म्हां० श्री श्री ॥ २ ॥ पु० देवा हो देव ज्युं बिचरी मंभारे जी ॥ म्हां० घांरो यश लच्छी फैलो देश विदेश में सारे जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ३ ॥ पु० घरा उपरे होवो घणा बड़ नामी नौ ॥ म्हां० म्हांरा एह मनोरथ लग रह्या अन्तरनामी जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ४ ॥ पुन नौ घांरी- मोहनी सूरत वसरहो मुन हिय मांयोंनी ॥ न्हां० घांरो भू पर बध ज्यो दिन २ ते सवायोजी || म्हा० श्री श्री ॥ ५॥ पुजजी यांरा संत शत्या सूं सांसण खिल रह्यो सारोनी ॥ म्हां० घारी गादी अचल

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113