Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ ( ८७ ) मोहनी सूरत ॥ सौम्य मुद्रा सुखकारी॥ मोयः॥३॥ तखत वीराजे छटा पति सोहै। दीपत तेज दिनारी ॥ मोय० ॥ ४ ॥ बैठ सभा विच देवो देशना ॥ वाक्य घटा वरसारी॥ मोय० ॥ ५ ॥ श्रवण सुणत अवि जीव आनंद मन ॥ रोम २ हुलसारी ॥ मोय० ॥६॥ धन वंदन को चानक चाहत ॥ ताय चाहत नरनारी ॥ सोय. ।। ७ ॥ जोरावर तोसु अरज करत है। मानो अरज हमारी ॥ मोय० ॥८॥ शद जारस गुण गावत तनमन ॥ मृगसर मास मंझारी ॥ मोय० ॥ ६ ॥ इति ॥ ___ अथढाल ४ चौथौ राग० माढ ॥ म्हारे ढोले छाई बीकानेर ॥ एदेशी० म्हांनै प्यारा लागे खामी कालुराम ॥ म्हानै बाहला लागै खामौ कालुराम ॥ हांनी थांरी जपन करु आठोंयाम ॥ म्हा० ए० पंचमें आरे

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113