Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( १८ ) देव जिनेन्ट्रसा ॥ प्रगटे भर्थमें पान ॥ भिक्षु गणिंदको अष्टम पाटे॥ जिम उदिया चल भान ॥ महारानां आप निम उदिया चल भान ! हा० ॥१॥ शमा सुधर्मों इन्द्रतयो पर पामत शोभ असाम ॥ जिम मुनिगणमें आप तणौ छिब॥ नौको लागै ताम ॥ आठौ छिबनौको लागै ताम ॥ म्हां ॥२॥ भवि जन सेवा सारै आपकौ ॥ कवड़ी लगै न छदाम ॥ प्रात उठी थांरा दर्शन पावै ॥ ज्यांरा कटच्यावै पाप तमाम ॥ हांजी वारा काट ज्यावै पाप तमाम ॥ म्हां ॥ ३ ॥ तुन चरयों में रम रद्याते॥नित गावै गुण ग्राम ॥ गावत २ कर्म खपावै ॥ पावै अविचल धाम ॥ हांजी बैतो पावै अबिचल धाम ॥ म्हां० ॥ ४ ॥ गोप्यांके मन कान्ह बसत नित ॥ सौवाके मन रोम ॥ जिममन मनमें - बसरयाजी ॥ म्हारी सारो बंछित काम ॥

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