Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ ( ३४ ) ॥ जरा०॥८॥ सुगुरु सुदेव सुधर्म प्रसाद। जान दीपक घट जोता ॥ जरा० ॥६॥ अपतप संयम धर सुध करणी ॥ कर्म मेल सहु धोता ॥ जरा० ॥ १० ॥ जोरावर कहै प्रभु भजन बिन ॥ कोई न पार पू गोता ॥ जरा० ॥११॥ इति । __ पथ श्री मांणक गणिक गुणांको सत्वन ॥रागः ॥ छाइ घटा गिगनमैं कारी। राजल कं ब्रहा दुःखभारी ॥ एदेशी० मांणक गणिराज उद्दारी॥ में नाउ तुज बलिहारो॥ एमां० भिक्षु भारी माल ऋषिरायो ॥ जय गणपत कलश चढ़ायो । ज्यांग दिनर तेज सवायो॥ वांसांसण खूब दिपायो। सुयश चिहुं दिश बिच छायो॥ भविजन मन सुण हर्षायो॥ झड़. पंचमें मघरान उदारौ ॥ ज्यांरौ शोम्य प्रकृत सुख कारौ॥ ज्यांने याद करे नर नारी ॥तोड़.

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113