Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 42
________________ ( ३६ ), के बारी ॥ में० ॥ ३ ॥ बर्षे बलधर जिम बांगो बत्ति गंजे सिंह समांणी ॥ बायो रस संवेग पिकां ॥ पिवै जन प्रेम प्रमांणौ ॥ सुण - चावक मन हर्षाणो ॥ के संयम - लै शव प्राणो ॥ भड• गणि भवि जीवांने तारे । भवनां दुःख भंजय हारे ॥ करता गणि पर उपगारे !! तोड़• गणि रतनगढ़ उधार ॥ कियो उपगार ॥ दर्श दियं भारी ॥ में० ॥४॥ षट् खंड नेम षट्मत्ता ॥ गणि चक्रि जिम सार्धंता ॥ चम्यां खडग धरता । गणि नव निधि बाङ सोहंता । गणिनां दर्शण पावंता ॥ केंद्र जग बिरला पुन्यवंता ॥ कड० इम गणि गण अन्तन स्थाये ॥ किम एके नौभ कहाये || बोराजो रतनगढ़ मांये | तोड० एह बौनतो मंगल कार || अर्ज अवधार में ॥ ५ ॥ ॥ इति० । वारो भवपारी । fa

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