Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ८३ )
बोग न मिलसौरे ॥ श्रोभव रतन चिन्तामा सरिखी ॥ ए० ॥ १ ॥ च्या गत चौरासी गत मै जिहां तुरुलतो आयोरे ॥ पुन्न जोगे सुपनांरी संपत || मानवरो भव पायोरे ॥ भ० ॥ २ ॥ बेली घारे बहोला नौवडला ॥ लहै जिनजौ रो नांमोरे ॥ कु गुरु कुदेव कुधर्म छाडीने ॥ कोज्यो उत्तम कासरे || ओ० ॥ ३ ॥ व्यु ब्राह्मणने चिंता मण लाभो || पुन्नतर्ण संजोगोरे ॥ कांकर साटै राजन दीधी ॥ फेर मिलणरो नहीं जोगोरे ॥ ओ० ॥ ४ ॥ धन साधुजो संगम मालै || सूधै मारग चालैरे ॥ खरो न नांगों गांठे बांधे || खोटी दिष्ट न घालैरे || ओ. ॥ ५ ॥ एक काल थारो काल गयी हैं एककाल घारी नेडोरे ॥ ति बिचमें तु' बैठ्यो नवडला ॥ काल आहेड़ी कैडोरे ॥ पो• ॥६॥ मात पिता या सुत बन्धव ॥ बहुते

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