Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 83
________________ ( ८१ ) ढाल | राग० उठ चढ़ीनै लग्यो तावड़ी कर छतरीको छांयां मारा चांदः आपां दोनु मिल चढ़ स्यांजी ॥ मारा० घणामौजाजी चादनी वो थारौ सूरत प्यारोजी ॥ मारा. गुणका सागर चांदजी मारी भीड़ निभावोजी । एदेशो० ॥ भिक्ष सप्तमे पाट गणाधिप डालगणि यश धारौ ॥ मांरा खाम० जग हितकारौरे । मागं घणां उजागर श्वामजीरे थांरा दर्शन पाया २॥ मारा गुणका सागर नाथ जीरे ॥ मन हर्ष उमायारे॥ १ ॥. मात जडावां उदर ऊपन्यां कृष्ण कुले अवतारी ॥ मारा. श्या उपगारौरे ॥ मांरा जिन मघ मंडन वामजौरे थांरी सूरत प्यारीरे ॥ मारा कुमति बिहंडन नाथजीरे थांरो महि यश भारौरे ॥२॥ षट्श ओपम अष्ट संपदा गुण षट स उधारी॥ मारा.कौरत मारौरे ॥ मारा

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