Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ८० ) करणकु२॥ छटा जबर बोरे छिबभारी बीरे॥ पेखण कु हारे पेखण कु॥ गण पत घटा ज्वरे ॥ खामी गुंज रह्या गणमें घटा ज्यरे ॥ गणि बर्षे बचन सुणों हर्षे सुजन ॥ कुमति भूज रह्या ढौला पन्थी धूज रह्या ॥ अया पद पूज रह्या ॥ गणं में घटा ज्युरे॥ वामौ गूंज रह्यो गणमें घटा ज्यरे ॥३॥ भाग्य बलि अब मम हरणकु: २॥ गणि शक्री इत्तार भानो पकी जिसारे॥ सांसण हरि सांसणपे ॥ गणपत पिता ज्यरे ॥ पृथीपाल रहा गछनेपिता ज्यारे॥ गणि बोलें सुमत खलता खोङ कुमत ॥ मद गाल रह्या बाबां फेरा हाल. रह्या ॥ अया, गुण घाल रह्या ॥. गछने पिता ज्यारे ॥ ४॥ इति । ॥ राय कुवाजी म्हा सतियां जी कृत ॥
पथ डालचंदजी म्हाराज के गुणांकी

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