Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 89
________________ ( ८७ ) भ. बयतरणी भदौ लोही राधरी ॥ तिणरो तौखो नौर ॥ भ. तिणमै डवोवै पापी जीवनै ॥ छिट २ होय शरीर ॥ भव० ॥१०॥ भ. ढांढे ज्यं चरतो रहतो ॥ गिणतो नहीं तिथ न बार ॥म० पान फल सूख छेदतो॥ दया न आणी लिगार ॥ भव० ॥ ११ ॥ भ० विर्ष तिहां पुले छांवलौ। बैठती तिणरी छांय ॥ भ० पान पड़े तरवार ज्यं ॥ टूक २ हुय ज्याय ॥ भव० ॥ १२ ॥ भ. पराई छाती दामती॥ चोखा बहोत जमाल ॥ भ० धन तो खाधी कुटम्बीयां ॥ मार एकलडी माल ॥ भव० ॥ १३ ॥ भ० धंधेमै खूतो रहतो ॥ जूतो घरकै बार ॥ भ० लोह तणै रथ जोड़ीयो॥ धर ताता अगार ॥ भ० .॥ १४॥ भ० हाथ पांव छेदन करै॥ नाखै अंग मरोड़। भ. तिण नायगां आय अपनो॥ नहोछ

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