Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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श्रो० ॥ १२ ॥ गुरू कंचन गुरू होरा जीवडला ॥ गुरू ज्ञानरा भरियार ॥ ज्यां तुरू उपदेश हृदयमें धारयो ॥ अनंत भवे नौव तिरियारे ॥ ओ० ॥ १३ ॥ इतिः ।
अथ श्री भव नौवांकी ढाल बैराग की ॥ राग० ॥ पंची गोरीरो छोड़ोहो रसिया बल पड़े। एदेशी० भव जौवां आद जनेश्वर वौन बु॥ सत्त गुरू लागं पाय ॥ भव जौवां मन वचन काया बस करो ॥ छोड़ो च्यार कखाय ॥ भव जोवां करणौं हो की ज्योचित निरमली ॥ ए० ॥ १ ॥ भवजीवां मौनख जमारो दोहेलो ॥ सुत्र संग भवसार ॥ म. साची सरधा दोहेलौ । अत्तम कुल अबतार ॥ भव० ॥ २ ॥ भ. सिकियो इण संसारमै ॥ भड़भूजा को भाड़ ॥ भ. निगरंथ गुर हेला देवै । अब तं आंख उधाड़ ॥ भ० ॥ ३ ॥ भ० - मोह

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