Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 86
________________ ( ८४ ) ममता जोडेरे ॥ यां सेती जौवरौ गरज सरैती ॥ साधुजी घर क्यांनै छोडेरे ॥ श्र० ॥ ॥ ७ ॥ मोह मिथ्यात विषय रस छोडी ॥ सम्बर समायक कौजैरे || गुर उपदेश सदा सुखकारी || सुगुरू नो अमृत पौजैरे ॥ श्र० ॥ ८ ॥ उयु अंजली मै नौर समावै ॥ खिणर उणों थावेरे ॥ घडौर मैं घडियाबल बाजै ॥ थारौ खिण लाखोणी जावैरे ॥ ओ० ॥ ९ संयम मारग सुध कर पालो ॥ ' शिव रमणौ फल होवेरे ॥ मिनखरो भव है मुक्तिरो कारण ।। अहली तो मत खोवैरे ॥ श्री० ॥ १० ॥ कायर नर कादा में पार उतरसौर ॥ बाहर भीतर समता राखो || जन्म मरण नहीं करसौर || ओ० ॥ ११ ॥ देव गुरू धर्मं दृढ़ करि सेवो ॥ सम गत सुध आराधोरे ॥ छव काय जीवांरी नयां पालो || मुक्त तथा फूल साधोरे ॥ पड़सी ॥ सूरा

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