Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ८६ ) मिथ्यात रौ नौंद मै ॥ सूतो काल अनाद॥ भ० जन्म मरण बहुला किया ॥ ज्ञान बिना नही याद ॥ भ० ॥ ४॥ भ० नर्क तणां दुःख दोहेला ॥ सुण तां थर हर थाय ॥ भ० पाप कर्म बहुला कौयो । मार अनंती खाय ॥ भव० ॥ ५ ॥ भ० चांद सूर्य सुख दोषै नहीं ॥ दौथै घोर अधार ॥ भ. भाजण नै सेरौ नहीं ॥ जिहां भाजै जिहां मार ॥ भव० ॥६॥ भ० आंधो जीमण रातरो॥ करतो डरतो नहि ॥ भ० बो भर भाटो तेहनै॥ चांपै मुखड़ा रै मांह॥ भव० ॥ ७॥ भ. परमां धामों देवता ॥ ज्यारो पनरै जात | भ० मार देव पापी जीवन ॥ करै अनंती घात ॥ भव० ॥८॥ भ० अर्थ अनर्थ धन कारणे ॥ नल ढोल्यो बिन ज्ञान ॥ भ. बाहेर मुच बहुला किया ॥ भौतर मेल अचान ॥ भव० ॥६॥

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