Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ७१ )
कोई गोप्याँके नंदलालोजी तिमगणी वालो सुज ने सहौ । अहो निस ध्यावत कांनन । गयंद कोई सियाके रघुरायोनी ॥ तिमगणो मन भायो दास तुज सही ॥ ५ ॥ एक रसना करोकेम कहिवाय । कोई अमर पती ज्यो आवेजी गुण गावै सहस्र जिह्वा करो । गुणतो अगणित पारन लंघाय । कोई एहवाकै मुज स्वांमौहो । महौ नांमीश्रष्ट गुणांवरी ॥ ६ ॥ ईद्रौ रस निधि चंद्रोदय मांय । कोई प्रथम कृष्ण जेठसासेजी ॥ थई हुलासे गणि गुणगावीया । कोई सक्तमलगणि स्तवन सुगाय । गणि वरना गुण गायानी । सुखपाया भविमन भावीया ॥ ७ ॥ इति०
॥ स्वामीजी श्रीकनी रामजी कत ॥ थौडालगणि गुणाको ढाल० राग० खेलण द्यो गणगोर भंवर मांनैनिर खा दोगण गोरजी म्हारिसहियां जोवैवाट भंवर म्हां ॥ एदेशी

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