Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 65
________________ [२३] जी ॥ भूख दृखा मिटै तस देख्यां ॥ भाष गया जगदीशोजी । दूण ॥ ७॥ दोयसोने तेपन मोती ॥ स्वार्थ शिद्दर गिणियां जौ। विसला नंदन वीर जनस्वर केवल ग्यानी धुणीयांजी ॥ दूण ॥८॥ वायु जोगे सौती • श्राफलतो ॥ तोड़ मोती मूल न फुटैजी । मोठा सब्द गहर गंभीरा । त्यां मोत्यां मै सु उठे जौ ॥ दूण ॥६॥ ते सदा काल शाखता मोती ॥ त्यां नै पवन चलावैजी॥ मधुरा सब्द त्यां मै मुनिसरें। ते सुर नै घणा सुहावैजी ॥ इण• ॥ १० ॥ जाणै बतीस विधि नाटक पङ छ। विविध वाज्यंतर सोहै जी ।। छतीस रागणी त्यां मां सु नौकलै ॥ ते सुरना मनडा मोहै जो इण० ॥११॥ बूर बनस्पति नै पोल रूदूरो॥ एसी ओपमां न्हालोजी ॥ माखण नै रेसम ना लच्छा ॥ तिण स्यूं सेज घणी सुहाली जी ॥ दूण ॥

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