Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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सुखकारी॥ हारेसुख० ॥६॥ संम्बतउगणीसै चोसठी सरोकारो । हारेसरोकारोरे महाप्यारो॥ हरि दितिया कृष्णा सोमवारी। हारे सक्तमल हर्ष अपारो। गुणगावत महामहोत्सवमा मुखबारो ॥ हरिसुख० ॥७॥ इति • __ अथ ढालर टुजी राग० माताजी सभा दर्शन०एदेशी हांजीगणी भिक्षुगणोक पाटकै सप्तम सोहताहो खाम ॥ हांजी गणी पेखत तुम दीदारकै भवि मन मोहता हो वाम ।। हांजौ भवि जपो पूज आनन्द मनिंद मनोहरू हो खाम ॥१॥ हांजी गणि- सदन बदन छिन छाजतरानत चंद्रमुखी होखाम॥ हांजीगणि तुम तारण मुनि नायकै सांसण गण अखो हो खाम ॥ २ ॥ हांजोगणि गुण षट वौंस उदारकै ओपम षट् दस ऊपती हो खांम ॥ हांजी गणी बसु संपद बपुधारकै भक्त उदारण नित प्रतौ हो खाम ॥३॥

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