Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 67
________________ ( १ ) || स्वामीजी श्री सतमलजी कृत ॥ अथ श्री डालचंदजी म्हाराज के गुणां की ढाल ॥ पहलौरागः ॥ अपत्सरा करती चारती जिन आगे । हांरे जिन आगरे प्रभु आगे एदेशी ० डाल गणि नित सेविये सुखकारी। हर सुख कारौ रे सुखकारी । हारे थांरी मुद्रा मोहन गारी । हांरे थांरी चरण कमल बलिहारी । डालगण नित सेविये सुखकारी ॥ ए मां० भिक्षु पाटे सप्तमें यश धारी। हां रे यश वारीरे यश धारौ । हारे एहतो साहस जिन अवतारी । हां रे थांरी जगमें कीरत भारी शोभ रह्या चिहुं तौर्थमें सुखकारी ॥ हां रे सुख• ॥ २ ॥ नयर उजेगी दीपती कान के नंदा। हांरे कान के नंदा रे गणि नंदा || हरि धारो मानंद पूनम चंदा । हरि थाने सेवै सुरनर वृंदा ॥ परतच्च देवतख संमां सुखकारी ॥ हारे सुख• ॥ २ ॥ नवके

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