Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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( ( 8 )
हांजी गणी बांगो पति सुखकारके सरस अमृत सहि हो खांम ॥ हांजी गणि श्रवण 'सुणत अति प्यारकै बहु सुख पावही हो खाम ॥ ४ ॥ हांजोगणि तुम गुण अपरम 'पारकै स्वयंभु रमण नेहवाहो प्रवांम ॥ हांजी गणि किम कहिय लघु बुद्ध अधिक गुण गेहवाहो श्वांस ॥ ५ ॥ हांजोग वेद ऋतु ग्रह चंद्र मोष्ट सुक्का - वयोदशी हो खांम ॥
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हांनी गणि सतमल गुण गायकै तन मन
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हियो हुलसी हो श्वांम ॥ ६ ॥ इति ।
अर्थ ढाल ३ तीसरी राग० घुम घुमलो गाघरो म्हांरौ एङौलुलर जावैहो लाल पदेशी ॥ पंचमः आरे भर्थ मंझारे प्रगयां भिक्षु पवतारौ होलाल || न्याय मार्ग सुद्ध बताविभषि मंजन किव निसतारो होलाल । हो जसधारी खांमनौ । थांरो महिमें महिमां भारी हो
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लाख || हो सुखकारि वामनी । थे तो
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