Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 63
________________ [२१] । देमुगरनौमारोरे । कोइ० ॥१५॥ कुणराजाने कुणग्रहपती ॥ बाल्या जन्म विगाडोरे ॥ काल लपेटा लेय रह्यो है ॥ अब तो आंख उघाडोरे। कोइ० ॥१६॥ हंडानामें काल अवसरपणी ॥ महा दुःखमी आरोरे ॥ असल साध थे कठिन कह्यापिण ॥ एमोटा अणगारोरे ॥ कोइ० ॥ १७ ॥ पुज्य पिटारो बैगुण भरियो। ज्य मोवियनको हारोरे ॥ शोम कहै श्रीपुज्य बुद्धिको ॥ नहीं खूट भंडारोरे। कोइ० ॥ १८॥ शांशण नायक श्रीपुज्य जी॥ अरिहंतज्य इण आरोरे ॥ शोभ कहै श्रीपूज्य सरीखो नहीं कोई भर्थमंझारोरे॥ कोई० ॥ १६ ॥ इति. अथ ढाल श्वार्थ सिद्ध के बरणनको । दूग्यारैसै जोजनरौ महलायत । तेरतना सेती जडियाजौ ॥ साध पणो सुध ने नर पालै । त्यारै पानै पडिया जी ॥ इण खार्थ

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