Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 64
________________ [२२] सिद्धरे चंद्र वै कांई। मोती भंबक शोहै जी ॥ १॥ तसु झंवकरै बिचलो मोति ॥ चोसट मणरो नाणों जी॥ च्यारू मोती तास पाख तौयां। बतौस २ मणरा बखाणी जो ॥ इण ॥२॥ तेहनै पाखतीयां अति निर्मल। सोलै २ मणरा अठ मोती जी ।। सुदरता देखी हियोहरूँ ॥ आंखडल्यां रहै जोतीजी ॥ इण ॥३॥ तमुपाखतीयां सोले । मोती ॥ त्यामै आठ २ मणरा भारिजी सोभा अधिक बिराजै तेहनी॥ दौठो हर्ष अपारीजी॥ इण० ॥४॥ बतीस मोती तास पाखतीयां च्यार २मणरा तोलोजी ॥ जीवंता टप्त नही हुवै॥ मोती घणा अमोलो जौ॥ दूण ॥५॥ तास पाखतीयां चौसठ मोती ॥ ते दोय २ मणरा तासो नौ ॥ तेज उद्योत करै तिणठामै ॥ त्याछै घणो प्रकासो जी॥ इण ॥ ६ ॥ त्यां पासै मोती मण मणरा ॥ एक सोने अठाइसो

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