Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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tte ] चलावे || समुद्र मांखे फारोरे ॥ शोभ कहै थाने भवसागर थी || श्रीपुज्य उतारै पारोरे ॥ कोई ० ॥४॥ पाषंड फूटोज्या सरीखां लेडूवैला लारोरे ॥ असल साध भिक्षणजी स्वामी || निराधारं आधारोंर || कोई ० ॥५॥ श्रीपुज्य भिक्षणजोरी सरधा सुगियां ॥ पडे पाखंड मुवोरोरे || चेला चेली खोया कुमत्यां करकरकनिया कांरोरे ॥ कोइ० ॥६॥ साँध गुणां बिन हिज लूटै ॥ धाडोरे ॥ श्रीपुज्यनी चौडे बतावै
परतच पाडे
}} अबतो
आंख उघाडोर || कोई ० ॥ ७ ॥ तौर्घथापौने धर्म चलायो || नायें बोरनो बारोरे ॥ चौथे चारे बौर प्रगटिया || श्रीपुज्य पंचम आरोरे ॥ कोइ० ॥८॥ ज्योपर भवमै सुख चाहोतो || मानों शोभतणो मनुहारोरे ॥ नहीं मानों तो जोरौदावे ॥ देव पीठ परिहारोरे ॥ कोइ० ॥ ॥

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