Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ [ ] मैं पाटे ङालम गणो बन माली ॥ नंदन बन समएह गण नौको सदा रहो खुसयाली ॥ गणौ ॥ १ ॥ संत कुंड सुर तकसा सांचा | श्रावक तरु श्री कारी २ ॥ चिना बेल नाविका सर २ ।। द्रह बौर मुख करुणा बारि । सौंचत सम कित मूल २ ॥ सीमां श्रीट कोट करणीको । तप संजय है फूल || गणि● || ३ || सिचा सूर करत अतोसखरी । कामे कुबदा व्रण पूर २|| ज्ञान गौलोल गोफणीगेरौ । करता बाहर क्रूर लंगूर | गणि० || ४ || सुयश सुगंध छायो विह लोके रहे इंद्रादि लोभाइ ॥ अलौ मन ङालु पंकज सेवी । ल्यो फल शिव सुखदाई || गणि ०||५|| गोर करि नै चरनौ सुणियो नैपुर सहर पधारी ॥ चावग मोर कसौ घन जोवे तो चावै नर 3 श्रमणि है चावि । क्यारी ॥ गणो ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113