Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 45
________________ '[se] अनुयोगहार | युग परकार छत्तीसगुनाधर सुचभावस्यकसार । यतिधर्मदशविधनाधारी सामायंग सुखकार । उ० दोष बयालीस टालता । वाक्नटाले अनाचार पांचदोषमांडलैराटाले । गुनकरग्यानभंडार | घारसंपद अष्टदा ॥ दर्शण ॥ ५ ॥ निमगजरथदाजी प्यादलकर चक्रवरतदलसूर । तिमगणिनाय चरणतपदर्शन मिथ्यातिम्बकरदूर | क्षमाना ल संतोष जामखोग्यांनगोलाभरपूर | मुगत नगरपर दिया मोरचा अष्टकमंदल चूर | उ० सुरत अश्वचढियागयौ । सौलटोप सुखदाय । सुमत कमरकस गुप्त कटारी । मारी च्यारकषाय । नाय अगटूर भगंदा दर्श ॥ ६ ॥ अहिरावण सांसन मदमाता निसदिनधर्म उद्योत । मनमान्ह बस कीबोंजरनो अकुसके समजोत । पंचानन जिमगन मेगु जैदिनकरतेज सोव अविभयभंजन

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