Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
View full book text
________________
( . डाल गुरू गणिके गुणगायो० ॥ देश विदेश फिखो वहुतोपिणः॥ डाल जिसी गुरू कोयन पायो । सांसन नंदन बन्न सो.देखक मोमन हर्ष बब्योरे सवायो॥ पुन्य अंकर प्रगट भयो जब । स्वाम भिक्षनको मारगपायो। स्योपुर सुंदर नार बरन कू॥: डाल गुरू गणिके गुण गायो ॥१॥ उदै, भयो उदिया चल सो गणि ॥ भिक्षु को मार्ग भलीही दिपायो । घालत जानकी, जोत घनाघट.॥ मिथ्यात् रूपमधार मिठायोगा सारक खाम . सबे विध लायक ॥ घेख छटा मुज आनन्द भायो । स्योपुर सुंदर नार बरन कुंडाल 'गुरू गणिक गुण गायो ॥ २इति ।।
अथ श्री जेठांजी महा सतियांजी रौं ढाल ॥ राग मति जावो परदेश भंवरजी दीय रोटी देणां ॥ एह चालमें ॥ भजी पति नेठांजी भारी ॥ सर्व शत्यांमें शोभरमा

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113