Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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वो थारै ॥ सुख साता अब थाव ज्यो ॥१॥ एत्रां० ॥ मुनिपट भिक्षुके छजै ॥ डालचंद सुखकार ॥ मर्थं मैं प्रगयो भान ज्यु। मिथ्या ध्वांत बिडार ॥ म्हां ॥२॥ सरीर कारण बहु बिधकरौ। खम रह्या दृढ़ता धार ॥ मंदिर गिर सम खामजौ। पडिग भाव अपार ॥ म्हां ॥३॥ बसेष औषध लवे नहीं। साहा सौक सिरदार ॥ परवा नही कोई बातरी । तरण तारण रो विचार । म्हां ॥४॥ सूरो पुरष रणनै बिखै ॥ अरियण करै संघार॥ जिम प्रभु कम रीपू भणी ॥ कापै 'विवध प्रकार ॥ म्हां ॥ ५ ॥ देश २ मैं थांहरा। चावै शुभ समाचार । बाट जोवे बहु प्राणीयां । व्युचकवी दिनकार ॥ म्हां ॥६॥ हुवै तन द् सती पाप। इम चाहै नर नार ॥ च्यार तीर्थमें पानन्द हुवै। बरतै मंगलाचार ॥ म्हां ॥७॥ साता

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