Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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इण० ॥ २॥ पाखंड भेख बध्या बहुतेरा। ज्यानै चरंचासुनौत बिडारी ॥ सुद्ध मार्ग प्रगट कौना। प्रभु बौरवचन उरधारी॥ पभु दूण ॥३॥ दोय अनुकंपके भेद बताया। दया दानको कियो विचारो॥ सावज्ज निरवद्य का छाण कोना। कियो ज्ञान भान उजियारौ ॥ कियो० दुण० ॥ ४॥ घरमजिनंदनो सांसन दिपायो। गणि किया घणा उपगारौ ॥ बहु प्रबंधवांध दीना। प्रभु च्यार तीर्थ हितकारी ॥ प्र० इण• ॥ ५॥ जोरावर गुण गाव यथार्थ। प्रण मतवार हजारौ । तुज चरण मरणमें लौना। थयो आनंद हर्ष अपारी ॥ थयो। पूण ॥ ६॥ सम्बत उगणीसै पैमठ बरसे पौष शुक्ल पक्षसारौ॥ गुण गाय खुसीभया सौना । नाउ बार बार बलिहारौ।। जाउं दूण ॥७॥ दूति.

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