Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad

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Page 13
________________ ॥ ५॥ बहुविध तपकर कर्म खपागै॥ध्यान धरी क्षेवल उपचारौ ॥ एरी० ॥ ६ ॥ दिस बिंदिसांमें कियो बहु उपगारौ ॥ गोतमादिक एकादश गणधारी ॥ एरो० ॥ ७॥ चउदै संहंस सुनिश्वर तारी॥ भार्यातागे छतीस हजारौं ॥ ए० ॥ ८ ॥ कामदेव बाद श्रावका विचारी ॥ एक लक्ष गुण सठ संहस उद्धारौ ॥ एरो० ॥ ६ ॥ तिरलक्ष सहंस अष्ठा दश सारी ॥ रेवती बाद श्राविका तोरी ॥ एचौ० ॥ १० ॥ लाखांचो डां सुलभबोधि दीया । रेणकादिक बढ़ समकित धारी ॥ एरी० ॥ ११॥ कोणक मत भयो तुज भारौ ॥ वह नो पाप कियो निस्तारी । एरो० ॥१२६. तुमतास्या ज्यारी पारन पारी। पिण अब पाई हम तणौ चारो॥ एरो० १३ ॥ पगट करण तुम समय धारी।एह द्धि कर भेट तुमागै|एरो०१४

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